सोने से पूर्व



सोने से पूर्व



 रात्रि में सोने से पूर्व पैर के तलवों पर तेल मलना लाभप्रद रहता है इससे शरीर की नस नाडि़या मजबूत होती हैं।

► सोने से पूर्व यदि पैरों को ताजे पानी से धो लिया जाए तो नींद बहुत अच्छी आती है।

► जो लोग पेट से सांस लेते हैं वो शान्त प्रकृति के होते हैं व दीर्ध आयु होते हैं। सांस सदा गहरी लेनी चाहिए। गहरी सांस का अर्थ है कि सांस को नाभि तक लेने का प्रयास करें। इससे नाभि चक्र सक्रिय रहता है। नाभि चक्र की सक्रियता पर ही हमारा पाचन तन्त्र निर्भर है।

► जिन लोगों को उच्च रक्त चाप की समस्या है यह छोटा से प्रयोग करके देखें। रक्तचाप मापें व नोट करें। फिर श्वास को 2-4 बार नीचे नाभि की तरफ धकेंले। फिर रक्तचाप नापें। रक्तचाप में कुछ न कुछ कमी अवश्य प्रतीत होगी।

► आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य की प्रकृति तीन प्रकार की होती है। वात, पित, कफ। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रकृति को पहचानने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। अपनी प्रकृति पहचानने के उपरान्त उसी अनुसार खान-पान, रहन-सहन व दवाओं का उपयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए पित्त प्रकृति का व्यक्ति गरम चीजों जैसे लहसुन आदि का प्रयोग बिल्कुल न करे। अधिक जानकारी के लिए स्वस्थ भारत नामक पुस्तक पढ़ें।

► भोजन में रोज अंकुरित अन्न अवश्य शामिल करो। अंकुरित अन्न में पौष्टिकता एवं खनिज लवण गुणात्मक मात्रा में बढ़ जाते हैं। इनमें मूंग सर्वोत्तम है। चना, अंकुरित या भीगी मूंगफली इसमें थोड़ी मेथी दाना एवं चुटकी भर- अजवायन मिला लें तो यह कई रोगों का प्रतिरोधक एवं प्रभावी ईलाज है।

► जब भी व्यक्ति को कोई रोग हो तो उसको हल्के उपवास व वैकल्पिक चिकित्सा प(ति का सहारा लेकर दूर करने का प्रयास करें। आज समाज में एक गलत परम्परा बन गई है जैसे ही व्यक्ति को छोटी-मोटी कोई बीमारी होती है अतः इनका उपयोग विवश्ता में करना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति का रक्तचाप बढ़ा हुआ है तो नमक करें। आॅंवला, ब्रह्मी अथवा सर्पगन्धा का प्रयोग करके उसको नियन्त्रित करे। तुरन्त अंग्रेजी दवाईयों की ओर न दौड़ें।

► वर्ष की आयु के उपरान्त वसा ;थ्ंजेद्ध, प्रोटीन का उपयोग सीमित रखें। नमक व चीनी भी कम लें। मीठे की पूर्ति के लिए फलों का उपयोग करें।

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